है यह जो – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ५
है यह जो सर्राफ़ा मियां, हैं इनमें कितने और भी।
हित के परेखे का दरब, चाहत की चोखी अशरफ़ी॥
जो ज्ञानी ध्यानी हैं बड़े, कहते उन्हीं को सेठ जी।
धन ध्यान के कुछ ढेर हैं, कोठी भी है कोठी बड़ी॥
मन के प्रेम और प्रीत का करते सदा व्योपार हैं॥५॥
राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.
है यह जो – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ५