वह साधु देख उस ठाठ को, कुछ मन में घबरा से गये।
जल्दी उठे और सामने, रथ के हुए आकर खड़े॥
पूछा उन्होंने कौन हो, तब साधु यूं कहने लगे।
नरसी की हुंडी दर्शनी, है जोग सांवल साह के॥
सी हमको वह मिलते नहीं, अब हम बहुत नाचार हैं॥२७॥
राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.