लोगों ने जाना अब बहुत, नरसी की ख़्वारी होवेगी।
लिख दी उन्होंने अब ज़ो यां, काहे को यह हुंडी पटी॥
यह द्वारिका से साधु यां, आवेंगे फिर कर जिस घड़ी।
पकड़ेंगे उनको आनकर, लोगों में होवेगी हंसी॥
खोये हैं पति इन्सान की, झूठे जो कारोबार हैं॥२३॥
राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.