जाकर लिखाओ और से, परतीत साधू क्या मेरी।
है मेरे पड़ रहने को यां, टूटी सी अब एक झोपड़ी॥
तन पर मेरे कपड़ा नहीं, ने घर में थाली, करछली।
मैं तो सिड़ी, ख़व्ती सा हूं, क्या साख मेरी बात की॥
सब नाम रखते हैं, मुझे जो मेरे नातेदार हैं॥२१॥
राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.