हैं फ़र्श कोठी में बिछे, तकिये लगे हैं ज़रफ़िशां।
बहियां खुलीं हैं सामने लिखते हैं लक्खी कारवां॥
कुछ पीठ की कुछ पर्त की, आती हैं बातें दरमियां।
लाखों की लिखते दर्शनी, सौ सैकड़ों की हुंडियां॥
क्या क्या मिती और सूद की, करते सदा तक़रार हैं॥२॥
राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.