वह साधु जो – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १६

वह साधु जो – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १६


वह साधु जो उतरे थे वां, कुछ थे रूपे उनके कने।
चाहा उन्होंने दर्शनी, हुंडी लिखा लें सेठ से॥
लेवें रुपे हुंडी दिखा, जब द्वारिका में पहुंच के।
कारज संवारें धरम के, जो नेक नामी वां मिले॥
करते हैं कारज प्रेम के, जाके जो उस दरबार हैं॥१६॥


राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.

वह साधु जो – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १६