वासना बड़ी छिनाल – संत माणकोजी बोधले अभंग

वासना बड़ी छिनाल – संत माणकोजी बोधले अभंग


वासना बड़ी छिनाल । फिरती चारोराज ।
मेरी बात सुनती नहि । बहुत किये हैरान ॥१॥
एक दिन मै पडि हात। दीओ पेडु परळात ।
शरण आयी पेट मे । निकली दाढी पकडी हात ॥ २॥
बिगिटिगिना खेलुंगी सुनोतु मारी बात ।
धती हमारा खुसी हुआ बडी किये शामत ॥ ३॥
कहे बोधला रजात लब दिये हमार हात ॥४॥


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वासना बड़ी छिनाल – संत माणकोजी बोधले अभंग