न गमे न गमे न गमे – संत कान्होबा अभंग – ५०

न गमे न गमे न गमे – संत कान्होबा अभंग – ५०


न गमे न गमे न गमे हरिविण ।
न गमे न गमे न गमे मेळवा शाम कोणी गे ॥१॥
तळमळ करी तैसा जीव जळाविण मासा ।
दिसती दिशा वोसा वो ॥२॥
नाठवे भूक तान विकळ जाले मन ।
घडी जाय प्रमाण जुगा एकी वा ॥३॥
जरी तुम्ही नोळखा सांगतों ऐका ।
तुकयाबंधुचा सखा जगजीवन वो ॥४॥


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न गमे न गमे न गमे – संत कान्होबा अभंग – ५०

संत कान्होबा अभंग समाप्त