आणीक कोणाचा न – संत तुकाराम अभंग – 938
माझी मेलीं बहुवरिं – संत तुकाराम अभंग – 937
शिष्यांची जो नेघे सेवा – संत तुकाराम अभंग – 936
दया क्षमा शांति – संत तुकाराम अभंग – 935
खरें बोले तरी – संत तुकाराम अभंग – 934
कां जी धरिलें नाम – संत तुकाराम अभंग – 933
पशु ऐसे होती ज्ञानी – संत तुकाराम अभंग – 932
निर्वैर होणें साधनाचें मूळ – संत तुकाराम अभंग – 931
साहोनियां टोले उरवावें – संत तुकाराम अभंग – 930
आम्हां अवघें भांडवल – संत तुकाराम अभंग – 929
आला भागासी तो करीं – संत तुकाराम अभंग – 928
भरला दिसे हाट – संत तुकाराम अभंग – 927
येथूनियां ठाव – संत तुकाराम अभंग – 926
बोलणेंचि नाहीं – संत तुकाराम अभंग – 925
अवघाचि आकार ग्रासियेला – संत तुकाराम अभंग – 924
समर्पीली वाणी – संत तुकाराम अभंग – 923
मिठवण्याचे धनी – संत तुकाराम अभंग – 922
जिंकावा संसार – संत तुकाराम अभंग – 921
मागतां विभाग – संत तुकाराम अभंग – 920
भक्तिसुख नाहीं आले – संत तुकाराम अभंग – 919
न लगे देशकाळ – संत तुकाराम अभंग – 918
काय शरीरापें काम – संत तुकाराम अभंग – 917
सोसें वाढे दोष – संत तुकाराम अभंग – 916
नव्हतियाचा सोस होता – संत तुकाराम अभंग – 915