आकारावंत मूर्ति – संत कान्होबा अभंग – ४४
मन उतावीळ – संत कान्होबा अभंग – ४३
तुम्हां आम्हांसी दरूषण – संत कान्होबा अभंग – ४२
उदार कृपाळ सांगसी जना – संत कान्होबा अभंग – ४१
अनंतजन्में जरी केल्या – संत कान्होबा अभंग – ४०
चित्तीं बैसलें चिंतन – संत कान्होबा अभंग – ३९
विठ्ठलारे तुझें वर्णितां – संत कान्होबा अभंग – ३८
सांपडलें जुनें – संत कान्होबा अभंग – ३७
आतां चुकलें देशावर – संत कान्होबा अभंग – ३६
माझ्या भावें केली जोडी – संत कान्होबा अभंग – ३५
पत्र उचटिलें प्रयत्नें – संत कान्होबा अभंग – ३४
हळूहळू जाड – संत कान्होबा अभंग – ३३
तोचि प्रसंग आला – संत कान्होबा अभंग – ३२
तिहीं ताळीं हेचि हाक – संत कान्होबा अभंग – ३१
आतां हें न सुटे न – संत कान्होबा अभंग – ३०
आतां न राहे क्षण – संत कान्होबा अभंग – २७
बहु बोलणें नये – संत कान्होबा अभंग – २९
तुज ते सर्व आहे – संत कान्होबा अभंग – २८
मागें असतासी कळला – संत कान्होबा अभंग – २६
देवा तुजपें माझ्या पूर्वजांचें – संत कान्होबा अभंग – २५
कांहीं विपत्ति आपत्यां – संत कान्होबा अभंग – २४
बरा जाणतोसी धर्मनीति – संत कान्होबा अभंग – २३
निसुर संसार करून – संत कान्होबा अभंग – २२
पूर्वीं पूर्वजाची गती – संत कान्होबा अभंग – २१