हैं फ़र्श कोठी – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – २
दुनियां के शहरों में – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १
आलें वारकरी करिती – संत भानुदास अभंग पंढरीनाथांचीभेट – ९४
कंसराव चिंता करी – संत भानुदास अभंग मांभळभट – ९३
सांडोनि तितुकें यथाबीज – संत भानुदास अभंग काला – ९२
कोरडिया काष्ठीं अंकूर – संत भानुदास अभंग काला – ९१
रायें कंठमाळ देवासी -संत भानुदास अभंग काला – ९०
आशीर्वाद देती भार्गव – संत भानुदास अभंग काला – ८९
गाई गोप विप्राचार – संत भानुदास अभंग काला – ८८
गूढीयेसी सांगु आलें – संत भानुदास अभंग काला – ८७
अवघ्या सोडियेल्या – संत भानुदास अभंग काला – ८६
ऐक साजनी वो बाई – संत भानुदास अभंग फुगडी – ८५
जमुनाके तट धेनु – संत भानुदास अभंग गौळण – ८४
वृदांवनीं वेणू कवणाच – संत भानुदास अभंग गौळण – ८३
उठी तात मात – संत भानुदास अभंग बालक्रिडा – ८२
तुम्हीं कृपानिधी संत – संत भानुदास अभंग करूणा – ८१
जें सुख क्षीरसागरीं – संत भानुदास अभंग करूणा – ८०
शेबंडी वाकूडीं – संत भानुदास अभंग करूणा – ७९
एकाचिये घरीं द्वारपाळ – संत भानुदास अभंग करूणा – ७८
इहीं श्रवणीं तुझें – संत भानुदास अभंग करूणा – ७७
श्रवणीं कीर्तीं ऐकेन – संत भानुदास अभंग करूणा – ७६
तुझिया रुपाची आवडी – संत भानुदास अभंग करूणा – ७५
आम्हां विष्णुदासां – संत तुकाराम अभंग –1200
माझा तो भरंवसा – संत भानुदास अभंग करूणा – ७४