मग लाउनी शिंकियाच्या – संत निळोबाराय अभंग – १०४
नाहींचि तुम्हां भीडचाड – संत निळोबाराय अभंग – १०३
लोगों से जब – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १७
वह साधु जो – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १६
सुनाकुमरी आमुचे – संत निळोबाराय अभंग – १०२
गोवळसंगे चोरिया करी – संत निळोबाराय अभंग – १०१
कहते हैं यू – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १५
येरें शब्द ते – संत निळोबाराय अभंग – १००
दिन रात की – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १४
सब तज दिया – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १३
जूं जूं बढ़ा – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १२
इस भेद का – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ११
जिस मन हरन – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १०
करते हैं नित – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ९
रहते हैं खु़श – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ८
यावरी गडियांसीं खेळत – संत निळोबाराय अभंग – ९९
मग बैसवूनियां पाटावरी – संत निळोबाराय अभंग – ९८
बीजक लगाते हैं – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ७
घरीं आपुलिया मातेपाशीं – संत निळोबाराय अभंग – ९७
म्हणती कृष्ण आवडे – संत निळोबाराय अभंग – ९६
हैं रूप दर्शन – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ६
है यह जो – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ५
थोड़ी सी पूंजी – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ४
कुछ मोल – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ३