मन में जो - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - ३२ मन में जो नरसी खु़श हुए, सब साधु यूं…
जब साधु मिलने - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - ३१ जब साधु मिलने को गये, नरसी वहीं छुपने लगे।…
गोवळ देती उष्टावळी - संत निळोबाराय अभंग - ११३ गोवळ देती उष्टावळी म्हणती गोड हें वनमाळी घालूनियां श्रीमुख त्या कमळीं…
वह साधु अपने - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - ३० वह साधु अपने ले रुपे, फिर शहर के भीतर…
अब जो मिलोगे - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २९ अब जो मिलोगे उनसे तुम, कहियो हमारी ओर से।…
पुढें गांईची खिल्लारें - संत निळोबाराय अभंग - ११२ पुढें गांईची खिल्लारें मागें गोवळ आपण भारें मुरलीवादन सप्तस्वरें करीत चालत…
देशें काळें वर्तमानें - संत निळोबाराय अभंग - १११ देशें काळें वर्तमानें न धरीं संकोच कांही मनें मी तो ऐसाचि…
यह कहके हुंडी - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २८ यह कहके हुंडी दर्शनी, जिस दम उन्होंने दी दिखा।…
म्हणे बा गौळणीचिया - संत निळोबाराय अभंग - ११० म्हणे बा गौळणीचिया रागें तुज म्यां बांधलें रे प्रसंगें तंव त्वां…
तेणें दणणिंले गोकुळ - संत निळोबाराय अभंग - १०९ तेणें दणणिंले गोकुळ उतरंडीहि खचल्या सकळ ॥ धांविन्नले गौळी आणि…
वह साधु देख - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २७ वह साधु देख उस ठाठ को, कुछ मन में…
बे आस होकर - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २६ बे आस होकर जिस घड़ी, वह साधु बैठे सर…
बर्फ़ी, जलेबी - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २५ बर्फ़ी, जलेबी और लड्डू, सबको वहां बरता दिये। जब सोच…
नरसी ने वह - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २४ नरसी ने वह लेकर रुपै, रख ध्यान हरि की…
लोगों ने जाना - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २३ लोगों ने जाना अब बहुत, नरसी की ख़्वारी होवेगी।…
यह बात सुनकर - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २२ यह बात सुनकर साधु वां, नसी से बोले उस…
जाकर लिखाओ - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २१ जाकर लिखाओ और से, परतीत साधू क्या मेरी। है मेरे…
नरसी ने - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - २० नरसी ने यूं सुनकर कहा, मैं तो ग़रीब अदना हूं…
ऐसें एकोनियां यशोदा - संत निळोबाराय अभंग - १०८ ऐसें एकोनियां यशोदा म्हणे तरी मी न सोडी तूंते कदा अंतरलें…
वह साधु क्या - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - १९ वह साधु क्या जानें कि यां, यह करते हैं…
देखोनि तें यशोदा - संत निळोबाराय अभंग - १०७ देखोनि तें यशोदा ऐकोनि गोठी क्रोधें संतप्त झाली पोटीं म्हणे हा…
म्हणती दसवंतीये देख - संत निळोबाराय अभंग - १०६ म्हणती दसवंतीये देख देख वोजे पाहे याचें मुख लोणीं माखलें साजूक…
कितने जो - श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता - १८ कितने जो ठट्ठे बाज़ थे जिस दम उन्होंने यह सुना।…
काली माजुम घेतला - संत निळोबाराय अभंग - १०५ काली माजुम घेतला होता गडियांसवें म्यां नेणतां तेणेंचि आजि माझिया चित्ता…