जमुनाके तट धेनु – संत भानुदास अभंग गौळण – ८४

जमुनाके तट धेनु –संत भानुदास अभंग गौळण – ८४


जमुनाके तट धेनु चरावत ।
राखत हैं गईया ॥१॥
मोहन मेरा सांइया ॥ध्रु०॥
मोरपंत्र शिरी छत्र सुहावे ।
गोपी धरत बहीया ॥२॥
भानुदास प्रभु भगतनको बछल ।
करत छत्र छाइया ॥३॥


राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.

जमुनाके तट धेनु – संत भानुदास अभंग गौळण  – ८४